डिजिटल डेस्क। अरावली पर्वत श्रृंखला में वन विभाग सहित कई संबंधित विभागों की लापरवाही, निष्क्रियता और कथित मिलीभगत के चलते बड़े पैमाने पर गैर वानिकी गतिविधियां जारी हैं।
गुरुग्राम और फरीदाबाद जिलों में अरावली की 10 हजार एकड़ से अधिक भूमि पर फार्म हाउस, मंदिर, गोशालाएं, धर्मशालाएं, होटल और स्कूल जैसे अवैध निर्माण खड़े हो चुके हैं। इसका सीधा असर हरियाली, वन्यजीवों और पर्यावरण संतुलन पर पड़ रहा है।
कानून के बावजूद धड़ल्ले से गैर वानिकी कार्य
हरियाणा के गठन के बाद से ही अरावली पहाड़ी क्षेत्र में पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम लागू है। इसके तहत किसी भी गैर वानिकी कार्य के लिए केंद्र सरकार से अनुमति अनिवार्य है। इसके अलावा 7 मई 1992 को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार गैर मुमकिन पहाड़ क्षेत्र में न तो पेड़ों की कटाई की जा सकती है और न ही किसी तरह का निर्माण किया जा सकता है।
यहां तक कि सड़क निर्माण, पाइपलाइन बिछाने या बिजली के खंभे लगाने के लिए भी केंद्र की अनुमति आवश्यक है। इसके बावजूद 1990 के बाद अरावली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण होते चले गए।
इन इलाकों में सबसे ज्यादा फार्म हाउस
अरावली क्षेत्र में रायसीना, गैरतपुर बास, सांप की नंगली, सोहना, मानेसर, पचगांव, दमदमा, रिठौज, बंधवाड़ी, ग्वालपहाड़ी, घाटा, बालियावास और फरीदाबाद से सटे क्षेत्रों में सबसे अधिक फार्म हाउस बनाए गए हैं। इनमें से कई फार्म हाउस लग्जरी रिसॉर्ट की तरह इस्तेमाल किए जा रहे हैं।
फार्म हाउसों से वन्यजीव हो रहे परेशान
पर्यावरणविदों के अनुसार फार्म हाउसों में होने वाली पार्टियों, तेज आवाज वाले संगीत और आतिशबाजी से वन्यजीव लगातार परेशान हो रहे हैं। डर और अशांति के कारण कई वन्यजीव रिहायशी इलाकों की ओर भटक जाते हैं। बीते कुछ वर्षों में 15 से अधिक वन्यजीवों की मौत हो चुकी है।
अरावली के सुरक्षित रहने के दौर में प्राकृतिक तालाबों में सालभर पानी रहता था, लेकिन अब अधिकांश तालाब सूख चुके हैं। पानी की तलाश में भी वन्यजीव आबादी वाले इलाकों में पहुंच रहे हैं।
अब कुछ इलाकों तक सिमट गए वन्यजीव
पहले जहां पूरे अरावली क्षेत्र में वन्यजीवों की मौजूदगी रहती थी, वहीं अब वे केवल घनी हरियाली वाले इलाकों तक सीमित हो गए हैं। इनमें वजीराबाद, घाटा, बंधवाड़ी, मांगर, ग्वालपहाड़ी, मानेसर घाटी, कासन, शिकोहपुर, सांप की नंगली, मंडावर, भोंडसी, दमदमा, धुनेला और फिरोजपुर झिरका शामिल हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अवैध निर्माण हटाए जाएं तो वन्यजीवों की संख्या में फिर से बढ़ोतरी संभव है।
कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति
वन विभाग द्वारा अवैध निर्माण हटाने की कार्रवाई अक्सर कागजी साबित हो रही है। तीन महीने पहले 90 फार्म हाउसों को नोटिस जारी किए गए, लेकिन इसके बाद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। कभी पुलिस फोर्स न मिलने तो कभी वीवीआईपी कार्यक्रमों का हवाला देकर कार्रवाई टाल दी जाती है।
डीटीपीई, नगर निगम और हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी अपने स्तर पर प्रभावी कदम उठाने में नाकाम साबित हो रहे हैं, जिससे अतिक्रमणकारियों का हौसला बढ़ता जा रहा है।
2017 की गणना के अनुसार अरावली के वन्यजीव
2017 में हुई गणना के अनुसार अरावली क्षेत्र में 126 लकड़बग्घे, 166 गीदड़, 91 सेहली, 61 बिज्जू, 50 नेवले, 31 तेंदुए, 26 जंगली बिल्लियां, 4 लोमड़ी, 3 भेड़िये और 2 लंगूर पाए गए थे।
विशेषज्ञों की राय
पर्यावरणविद् व सेवानिवृत्त वन संरक्षक डॉ. आरपी बालवान का कहना है कि अरावली पहाड़ी क्षेत्र पूरी तरह वन क्षेत्र घोषित है, ऐसे में यहां मौजूद सभी निर्माण अवैध हैं। अवैध निर्माण हटाने के लिए किसी विशेष अनुमति की जरूरत नहीं है, लेकिन प्रशासन जानबूझकर टालमटोल कर रहा है।


